सिद्धान्त
- समस्त विश्व के माथुर वैश्य बंधुओं में एक दूसरे के प्रति विश्वास की भावना उत्पन्न करना ।
- माथुर वैश्य समाज के नागरिकों में नैतिक तथा सौम्य गुणों को बढ़ावा देने हेतु अधिक रूचि रखना ।
- समस्त क्लबों को मित्रता, भाईचारे और आपसी विश्वास के बंधन में रखना ।
- सामाजिक सुधार के समस्त विषयों में सार्थक विचार मन्थन करना, परन्तु ऐसे विषयों का सम्बन्ध राजनीति तथा धर्म से न हो । अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा का यथा सम्भव सहयोग करना ।
- माथुर वैश्य समाज में सेवा करने के इच्छुक व्यक्तियों को प्रोत्साहित करना और यह देखना कि इनकी सेवा का लक्ष्य धन वृद्धि न हो | वाणिज्य, उद्योग, व्यवसाय तथा जनहित कार्य को अधिक संतोष तथा रुचिपूर्ण ढंग से करना ।
उद्देश्य
- आपस में भ्रातृत्व की भावना का विकास करना ।
- समाज के निर्धन अवं असहाय माथुर बंधुओं को सहयोग करना ।
- बेरोजगार व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराना ।
- निर्धन मेघावी छात्रों को आर्थिक सहायता देकर स्वावलम्बी बनाना ।
- समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए एकजुट होकर प्रयास करना ।
- प्रतिभाशाली व्यक्तियों को उनकी प्रतिभा के अनुरूप अवसर प्रदान करना ।
- विधवाओं को स्वावलम्बी बनने हेतु प्रेरित करते हुए सहयोग प्रदान करना ।
ईश प्रार्थना
वह शक्ति हमें दो दयानिधे,
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें |
पर सेवा पर उपकार में हम,
निज जीवन सफल बना जावें ||
हम दीन दुखी निबलों विकलों,
के सेवक बन सन्ताप हरें |
जो हों भूले भटके बिछुड़े,
उनको तारें ख़ुद तर जावें ||
छल-द्वेष-दम्भ-पाखण्ड- झूठ,
अन्याय से निशदिन दूर रहें |
जीवन हो शुद्ध सरल अपना,
शुचि प्रेम सुधारस बरसावें ||
निज आन मान मर्यादा का,
प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे |
जिस देश जाति में जन्म लिया,
बलिदान उसी पर हो जावें ||
राष्ट्र गान
जनगणमन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता।
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधितरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मांगे,
गाहे तब जयगाथा।
जनगण मंगलदायक जय हे
भारत भाग्यविधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय, जय हे।।